शनिवार, 21 मार्च 2015

गंगावतरण : एक अनूठा चित्रण

अलोरा की गुफाओं ने हमें चित्रमय प्रतिमाओं की अनूठी विरासत दी है। एक ऐसा ही मनोहारी चित्र हमारी शिल्‍प की उस परंपरा का प्रतिनिधित्‍व करता है, जो बाद में श्‍लोक होकर लोक से शास्‍त्र में समाहित हो गई। यूं तो शिल्‍प ग्रंथों में गंगाधर मूर्तियों के कई संदर्भ मिलते हैं। खासकर कामिकागम (उत्‍तरभाग), कारणागम (पूर्वभाग) जैसे शैवागमों से लेकर अंशुमद्भेदागम में भी यह विवरण आया है। अगस्‍त्‍य के सकलाधिकार का भी यह वर्ण्‍य बना तो मय के मयमतं का भी। यही विवरण शिल्‍परत्‍नम् के रचयिता श्रीकुमार के लिए भी प्रतिष्‍ठेय हुआ है और ईशान शिवगुरुदेवपद्धतिकार के लिए भी।

अलोरा की तस्‍वीर की विशेषता यह है कि इसमें गंगावतरण को बहुत रोचक ढंग से दिखाया गया है, शिव के दक्षिण-पार्श्‍व में भगीरथ एक पांव पर खड़े होकर तपस्‍यारत है और विष्‍णुपदी गंगा शिव के मस्‍तक से लहराती हुई उतर रही है। बाजुओं में ही मुनिजनों का उत्‍कीर्णन है। शिव का दाहिना हाथ उनके उष्‍णीष या पाग स्‍तर तक उठा हुआ है। उनका दायां पांव सुस्थित व बायां पांव कुंचित है। सिर पर विश्लिष्‍ट जटाबंध है और बायीं ओर मुख थोड़ा झुका हुआ है। पूर्व कारणागम में कहा है : जान्‍वंतं वापि नाभ्‍यन्‍तं भागीरथ्‍यास्‍तु मानकम्... और उत्‍तरकामिकाग में कहा है : कुर्याद् भगीरथं देवं नाभ्‍यस्‍थस्‍यन सीमगम्। यहां भगीरथ ऊपर की ओर है। 'शिल्‍परत्‍नम्' का विवरण देखियेगा जो कतिपय भेद के साथ ही इस रूप का प्रतिनिधित्‍व करता प्रतीत होता है :

सुस्थितं दक्षिणं पादं वामपादं तु कुंचितम्।
विश्लिष्‍यं स्‍याज्‍जटाबन्‍धं वामे त्‍वीषन्‍नताननम्।।
दक्षिणे पूर्वहस्‍ते तु वरदं दक्षिणेन तु।
देवी मुखाश्रितेनैव देवीमालिंग्‍य कारयेत्।।
दक्षिणापरहस्‍तेन उद्धृत्‍योष्‍णीषसीमकम्।
स्‍पृशेज्‍जटागतां गंगा वामेन मृगमुद्धरेत्।।
देवस्‍य वामपार्श्‍वे तु देवी विरहितानना।
सुस्थितं वामपादं तु कुंचितं दक्षिणं भवेत्।।
प्रसार्य दक्षिणं हस्‍तं वामहस्‍तं तु पुष्‍पधृक्।
सर्वाभरणसंयुक्‍तौ सर्वालंकारसंयुतौ।।
भगीरथं दक्षिणे तु पार्श्‍वे मुनिवरान्वितम्। (शिल्परत्‍नम उत्‍तरभाग 22, 67-72)

इस शिल्‍प में भृंगिरीट को गंगाजल काे निहारते भी देखा जा सकता है। कलाकार ने पहले चित्र काे आकारित किया और फिर उसमें मूर्तिमय किया है...चित्र को देखकर संस्‍कृत को पढियेगा। हर शब्‍द स्‍वयं ही अपना अर्थ देता प्रतीत होगा। आभार Thiru Srinivasachar Gopal का जिन्‍होंने यह कीमती चित्रोपहार उपलब्‍ध करवाया। इन दिनों शिल्‍परत्‍नम् पर कार्य करते समय अनायास ही इस चित्र मिलने का आनंद मिला, तो आप सबको भी इस आनंद का पान करवाने का अवसर मिल गया है....

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