शनिवार, 21 मार्च 2015

लिपियां - छोटा देश, बड़ा लिपि संसार

हमारे यहां कई लिपियां थीं। पहली सदी तक चौंसठ लिपियां अस्तित्‍व में थीं। इन लिपियों के अलग-अलग नाम भी मौजूद हैं। यह कैसे हुआ, कोई नहीं कह सकता, मगर लिपियों का इतनी संख्‍या में होना जाहिर करता है कि ये सब एकाएक नहीं आ गई। एक छोटे से देश में इतनी लिपियां और उनको लिखने की परंपरा,.. बुद्ध जब पढने जाते हैं तो पहले ही शिक्षक को 64 लिपियों के नाम गिनाते हैं जिनमें पहली लिपि ब्राह्मी हैं। महाभारत में विदुर को यवनानी लिपि के ज्ञात होने का जिक्र आया है, वशिष्‍ठस्‍मृति में विदेशी लिपि का संदर्भ है। किंतु ब्राह्मी वही लिपि है जिसको चीनी विश्‍वकोश में भी ब्रह्मा द्वारा उत्‍पन्‍न करना बताया गया है..।
पड़ नामक लिपि खोदक का नाम अशोक के शिलालेख में आता है, जो अपने हस्‍ताक्षर तो खरोष्‍टी में करता था अौर लिखता ब्राह्मीलिपि। हालांकि अशोक ने अपनी संदेशों को धर्मलिपि में कहा है...। सिंधु-हडप्‍पा की अपनी लिपि रही है, इस सभ्‍यता की लिपि के नामपट्ट धोलावीरा के उत्‍खनन में मिल चुके हैं...। कुछ शैलाश्रयों में भी संकेत लिपि के प्रमाण खोजे गए हैं।
ऐसे में ब्‍यूलर वगैरह उन पाश्‍चात्‍य विद्वानों के तर्कों का क्‍या होगा जो भारतीयों को अपनी लिपि का ज्ञान बाहर से ग्रहण करना बताते हैं। भारत में लिपियों का विकास अपने ढंग से, अपनी भाषा और अपने बोली व्‍यवहार के अनुसार हुआ है।
हर्षवर्धन के काल में लिखित 'कादम्‍बरी' में राजकुमार चंद्रापीड़ को अध्‍ययन के दौरान 'सर्वलिपिषु सर्वदेश भाषासु' प्रवीण किया गया। इस आधार पर यह माना जाता है कि उस काल तक लोग सभी लिपियां जानते थे, अनेक देश की भाषाओं को जानते थे। उनको पढ़ाया भी जाता था। लगता है कि भारतीयों को अनेक लिपियों का ज्ञान होता था और उनकी सीखने में दिलचस्‍पी थी। तभी तो हमारे यहां लिपिन्‍यास की परंपरा शास्‍त्रों में भी मिलती है। लिपिन्‍यास का पूरा विधान ही अनुष्‍ठान में मिलता है.. इस संबंध में एक बार फिर से प्रकाशनाधीन भारतीय प्राचीन लिपिमाला की भूमिका लिखी है इन दिनों,,, जिक्र फिर कभी।

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