शनिवार, 21 मार्च 2015

महासागर पर देवल...

पोकरण... प से होने वाला प्रारंभ। वही पोकरण जहां परमाणु बम के परीक्षण ने देश को 'जय विज्ञान' का नारा दिया। संस्‍कृत धर्मसूत्रों, पुराणों में जो 'पुष्‍करारण्‍य' नाम बहुत सम्‍मान के साथ आता है, उसको मरूभाषियों ने बहुत सम्‍मान के साथ 'पोकरण' या 'पोखरण' के रूप में बचाकर रखा है। यहां की इस ज़बानी गुण पर नाट्याचार्य भरत ने इसी‍लिए गुमान किया कि वे ओकारांत के रूप में मूल शब्‍द को सत्‍तावान रखते हैं। उत्‍तरभारत में फैला पोखरना गोत्र का समुदाय कहीं न कहीं इस क्षेत्र से अपना संबंध बताता है।

 यहां के एक 'दिवंगतीय देवल' या स्‍मारक के शिलालेख को भगवती स्‍वरूपा Kiran Rajpurohit Nitila ने भेजा है। उनका अनेक-अनेक आभार। यह अधिक पुराना नहीं है, 1930 ई. का ही है किंतु खास बात ये कि इसमें आजादी मिलने से पहले ही 'राजस्‍थान' शब्‍द का प्रयोग आया है और उसमें मारवाड़ को भी मान लिया गया था। यह चांपावत ठाकुर गुमानसिंह भभूतसिंहोत के स्‍मारक पर लगा है और राजस्‍थानी भाषा का अच्‍छा प्रयोग लिए है। लेखन में स्‍मृति को जीवंत करने के लिए गुमानसिंह के जन्‍म, गोद आने, टीका दस्‍तूर और दिवंगत होना वर्षवार लिखा गया है। यह अभिलेख यह जाहिर करता है कि वहां पितरों के स्‍मारक प्राय: जलस्रोतों के आसपास बनाए जाते थे। लोकगीतों में पितरों का वर्णन जलस्रोतों के आसपास अपने वस्‍त्रों को धोकर उजला करने का जिक्र भी आता है। जलाशयों के उत्‍सर्ग के क्रम में इष्‍टकर्म का जो विवरण मिलता है, वह भी इससे प्रामाणित होता है।

 शिलालेख का पाठ इस प्रकार है-

ऊं ।। स्‍वस्ति श्री राठोड़ वंशावतंस ठाकुरां राज. गुमानसिंहजी भभूतसिंहोत खांप चांपावत विट्ठलदासोत राजस्‍थान पोकरण मारवाड़, जन्‍म सं(व)त् 1904 रा काती बद 10, दासपा सूं खोले आया सं. 1919 रा फागण बद 5, राजतिलक बिराजिया संवत 1933 रा असाढ़ सुद 2, देवलोक हुवा सं. 1934 रा पोस बद 4, जिणां पर पोकरण में महासागर तलाब पर देवल करायो जिणरी प्रतिष्‍ठा आज संवत् 1987 रा फागण बद सोम में हुई।

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