मंगलवार, 24 मार्च 2015

निसारदी : रागमाला चित्र सर्जक

मुगलकाल में मेवाड़ और अकबरी दरबार के बीच एक सांस्‍कृतिक प्रतिस्‍पर्द्धा भी रही। महाराणा प्रताप के काल में निसारदी नामक चित्रकार ने चावंड में रहकर जिन चित्रों की शृंखला रची, वह रागमाला के नाम से इतिहास प्रसिद्ध है। निसारुद्दीन ने अपने चित्रों पर निसारदी नाम से हस्‍ताक्षर किए हैं। उसने अपना सृजन 1596 से आरंभ किया और 1605 तक निरंतर रखा। यानी दो महाराणाओं के कार्यकाल तक यह कार्य हुआ। इसे महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.) ने आरंभ किया और महाराणा अमरसिंह (1597-1615 ई.) के शासनकाल में पूरा हुआ। से रागमाला की इस चित्र श्रृंखला के बाद अन्‍यत्र भी रागमाला चित्र-श्रृंखलाएं बनीं। मेवाड में भी एक दूसरी रागमाला श्रृंखला साहबदीन ने तैयार की।

ताज्‍जुब इस बात का है कि रागमाला के नाम से कृतियों का सृजन अकबर के दरबार में हुआ था। प्रसिद्ध गायक तानसेन और विट्ठल पुंडरीक ने 'रागमाला' नाम से पुस्‍तकें लिखी हैं। विट्ठल पुंडरीक को जयपुर के कछवाहा वंश का संरक्षण प्राप्‍त था और तानसेन को अकबर का। मगर, इस कृति पर चित्रों की श्रृंखला खड़ी करने का श्रेय मेवाड़ को मिला।
मेवाड़ को यूं तो मुगल नीति विरोधी माना गया मगर इसी धरती पर रागमाला रची गई। है न दोनों सत्‍ताओं के बीच टकराव के दौर में सृजन के संकल्‍प का सुख और सौहार्द्र। यह शृंखला बहुत चर्चित रही। इसमें कम से कम 42 चित्र बनें। ये छह राग और 36 रागिनियों के थे। मारुराग के चित्र पर तो भारतीय डाक तार विभाग ने डाक टिकट भी जारी किया है।
(प्रस्‍तुत चित्र सोरठ रागिनी का है, गुजरात मूल की इस रागिनी में नायिका नायक तो तांबूल दे रही है। सोरठी गीतों में इस प्रकार की मनुहार परम्‍परा के गीतों की राग कभी सोरठी के नाम से ख्‍यात रही हो, यह सोचा जाना चाहिए।)

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