किशनगढ़ (राजस्थान) में
राजबहादुर श्री शार्दूलसिंह ने तेज बारिश में भग्न हुए जलाशय का
जीर्णोद्धार करवाया था। आज से 131 साल पहले यह कार्य बिल्कुल उसी तरह हुआ
जैसा कि मौर्यशासक चंद्रगुप्त द्वारा जूनागढ के पास सुवर्णसिकता नदी पर
बनाई गई 'सुदर्शन झील' को क्षत्रप शासक रुद्रदामन ने वर्षाकाल में टूट जाने
पर पुन: बनवाया था। गूंदा शाह नामक साहुकार की बनवाए गए इस गूंदोलाव नामक
जलाशय का विक्रम संवत् 1941 अर्थात् 1884 ई. में जीर्णोद्धार हुआ था। इस
सराेवर पर सीढि़यां या पेढ्यां बनवाई गईं।
इस पर जय नामक कवि ने प्रशस्ति की रचना की। यह सरोवर प्रशस्ति के नाम से
लिखी गई और इसमें छप्पय, सोरठा और दोहा छंद सहित राजस्थानी की 'वचनिका'
शैली का प्रयोग किया गया। राजस्थान ही नहीं, देश के जलाशयों के संरक्षण की
दिशा में यह प्रशस्ति अनूठी है। यह उन सभी जलप्रेमियों को प्रेरित करती है
जो बूंद-बूंद जल को बचाए रखने का विचार रखते हैं।
हरियाणा के श्रीमान रणवीरसिंहजी ने इस शिलालेख को मुझे दो दिन पहले पढ़ने
का भेजा था। आप भी इसका लाभ उठायेगा। इस शिलालेख का पंक्तिवार पाठ इस
प्रकार है...
''श्रीनाथजी।
सरोवर प्रशस्ति
छप्पय- प्रलय करन के हेत, किधौं जुरि जलधर आये।
चमकत चपला घोर धार जल थल जल छाये।।
सिमटि सिमटि जब चल्ये अंन अति तोर तरवर।
द्वैकर जल त्रय प्रहर पान चादर भई सरवर।।
शत हाथ नींव लौ उथलि कैं बह्यो नीर गंभीर गत।
प्रभु कियौ प्रकट तव नद किधौं सत्य सत्य कवि जय कहत।। 1।।
सोरठा -
अेसो पुण्य प्रताप। श्रीशार्दूल नरेश को।
ऐतो बह्यो अमाप। तऊ न एक हि नर बह्या।। 2।।
दोहा -
जीर्णोद्धार उपाय किय। गूंदा सरवर हेत।
श्रीशार्दूल नरेश कौ। वाह वाह जग देत।।
सरोवर प्रशस्ति
छप्पय- प्रलय करन के हेत, किधौं जुरि जलधर आये।
चमकत चपला घोर धार जल थल जल छाये।।
सिमटि सिमटि जब चल्ये अंन अति तोर तरवर।
द्वैकर जल त्रय प्रहर पान चादर भई सरवर।।
शत हाथ नींव लौ उथलि कैं बह्यो नीर गंभीर गत।
प्रभु कियौ प्रकट तव नद किधौं सत्य सत्य कवि जय कहत।। 1।।
सोरठा -
अेसो पुण्य प्रताप। श्रीशार्दूल नरेश को।
ऐतो बह्यो अमाप। तऊ न एक हि नर बह्या।। 2।।
दोहा -
जीर्णोद्धार उपाय किय। गूंदा सरवर हेत।
श्रीशार्दूल नरेश कौ। वाह वाह जग देत।।
वचनिका -
यह दरियाव गूंदालाव गूंदा साह सहूकार को बणायो हुवो, बहुत बरसां कौ है,
तीं की राजश्री बहादुरसिंहजी साहिबा का वक्त में फेर पालबंदी हुई, सो
बहादुरशाही नांम सूं पेड़यां प्रसिद्ध है, अबार संवत् 1941 का भादवा सुदी
14 नै वरसा बहुत हई अर पाल ऊपर होय हाथ दोय जल प्रहर तीन तांई झाव्यौ तीं
सूं पाल छि पर अर सुदि 15 नैं घडी दो दिन चढ्यां, मनोहर घाट सूं भैरूजी की
बुरज ताईं पाल हाथ 18 पे टूटी, सो महाराज शार्दूलसिंहजी साहिब बहादुर बणवाई
वा आगली पेढ्यां सूं हाथ 1- (सवा) ऊंची पाल बंधाई अर चादर हाथ 19 पै
मैंरषाई गई, सब दरियाव को जीर्णोद्वार कराय नया की माफिक करायो, ईकी कुल
मरमत पै रूपीया 31575-) लागा, अर यो काम सगतसिंहोत का ठाकरां भारथनाथसिंह
की संमाल सूं बण्यो...!''
यह कार्य सगतसिंहोत ठाकुर भारतसिंह की
देखरेख में हुआ था। इस पर इकतीस हजार पांच सौ पचहत्तर रुपए खर्च हुए थे।
रुद्रदामन ने सुदर्शन झील के जीर्णोद्धार के साथ प्रशस्ति लिखकर संस्कृत
की पहली प्रशस्ति का श्रीगणेश किया तो यह प्रशस्ति राजस्थानी में वचनिका
लेखन की परंपरा को प्रदर्शित करनी है। इसमें अतिवृष्टि और बाढ़ की त्रासदी
का आंखों देखा हाल भी लिखा गया है।
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