मित्रो, परमार राजवंश ने अपने समय को
बहुत शानदार ढंग से जीया है, कई गौरवशाली राजा इस वंश में हुए हैं। इस वंश
की उत्पत्ति भी अंग्निवेदी से मानी गई है... इस वंश के उद्भव के साक्षी
के रूप में Kutch Itihas Parisad
ने मुझे एक दुर्लभ शिलालेख भेजा है, उनके इस उपहार के लिए आभार,,, इसमें
परमारों के मुनि द्वारा नामकरण का विचार आया है।
इसके अनुसार परमार धवल ने
वल्लाल को मारा जो कि मालवा का शासक था। यह अन्य शासकों के बारे में भी
जानकारी देती है,, प्रारंभिक देवनागरी लिपि के रूप में इसकाे देखना चाहिए
जबकि ई की मात्रा को तो लिखा जाता था मगर ऐ की मात्रा को अक्षर से पूर्व ही
खड़ी पंक्ति के रूप में लिखा जाता था। यह संस्कृत में लिखा गया है।
इसका कुछ पाठ इस प्रकार पढ़ा जा सकता है--
इतश्च, अस्ति श्रीमानर्बुदाख्
वृद्धिं विंध्य: किंपुनर्यात्य सावित्यादित्य
तत्राथ मैत्रावरुणस्य जुद्वतश्चंडोग्
मत्वा मुनींद्र: परमारणक्षमं स व्याह रत्तं परमार संज्ञया।। 11।।
पुरा तस्यान्वये राजा धूमराजाद्वयो भवत्।
येन धूमध्वजेन दग्धा वंशा: क्षमाभृताम्।।
12।।
अपरेपि न संदग्धा धधूध्रुव भटादय।
जाता: कृताहवोत्साह बाहवो बहवस्तत।। 13।।
तदनन्तरमभ्रंगि
श्रीरामदेवनामा कामादपि सुन्दर: सो भूत्।। 14।।
तस्मान्महीववि
यो गुर्जरक्षितिपति
बहुत खोजबीन से विदित हुआ है कि यह अभिलेख वीर विनोद नामक इतिहास ग्रंथ के
भाग द्वितीय में शेष संग्रह के 11वें क्रम पर 1884 ई में प्रकाशित हुआ है,
यह 14वीं सदी के पूर्वार्द्ध के किसी वर्ष का होना चाहिए, इसमें परमारों
के मूल पुरुष धूमराज को बताया गया है और रामदेव के लिए कहा गया है वह अपने
वंश में बहुत सुंदर था, उसके पुत्र धवल ने कुमारपाल के शत्रु मालवा के
बल्लाल का हनन किया था, उसके पुत्र धारावर्ष ने कोंकण के राजा का वध किया,
उसके अनुज प्रहलादन की वीरता व सोमसिंह के शौर्य का विवरण भी यह
प्रशस्ति देती है..., हालांकि इस प्रशस्ति के अनेक अक्षर खंडित है और
संवत की जानकारी देने वाली पंक्ति भी नदारद है... आबू वसिष्ठ के यज्ञ के
लिए महशूर है किंतु इस प्रशस्ति में वसिष्ठ के पिता, उर्वशी के स्वामी
मित्रावरुण को यज्ञकर्ता कहा है... वे यायावरी के लिए ख्यातनाम रहे।
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