शिवपूजा में सदा निरत रहने वाली
भगवती स्वरूपा अहल्या बाई का एक अभिलेख मित्रवर श्री राज्यपाल शर्मा
(झालावाड़) ने भिजवाया है। यह जाम गेट महू के द्वार पर लगा है और देवनागरी
के स्पष्टाक्षरों में
संस्कृत भाषा में लिखा गया है। इसमें संवत लिखने में ही दो श्लोकों का
प्रयोग किया गया है। विक्रम और शक दोनों ही संवतों का प्रयोग किया गया है,
विक्रम संवत 1847 के माघ मास की 13वीं तिथि को इसको लिखा गया है। द्वार की
प्रशंसा में मनोहर शब्द मात्र लिखा गया है।
मूलपाठ इस प्रकार है :
श्री।
श्रीगणेशाय नम:।।
स्वस्ति श्रीविक्रमार्कस ्य संमत्
1847 सप्ताब्धिनागभू :।
शाके 1712 युग्मकुसप्तैक मिते
दुर्मति वत्सरे। माघे शुक्ल त्रयोदश्यां पुष्यर्क्षे
बुधवारे सुबा (स्नुषा)* मल्लारि रावस्य खंडेरावस्य वल्लभा।। 2।।
शिव पुजापरां नित्यं ब्रह्मप्याधर्म तत्परा।
अहल्यारग्राबबं धेदं मार्ग द्वार शुशोभनम़।। 3।।
मूलपाठ इस प्रकार है :
श्री।
श्रीगणेशाय नम:।।
स्वस्ति श्रीविक्रमार्कस
1847 सप्ताब्धिनागभू
शाके 1712 युग्मकुसप्तैक
दुर्मति वत्सरे। माघे शुक्ल त्रयोदश्यां पुष्यर्क्षे
बुधवारे सुबा (स्नुषा)* मल्लारि रावस्य खंडेरावस्य वल्लभा।। 2।।
शिव पुजापरां नित्यं ब्रह्मप्याधर्म
अहल्यारग्राबबं
अहल्याबाई ने कई निर्माण कार्य करवाए, उनमें द्वार रचना भी हुई है। इस शिलालेख में स्नुषा शब्द आया है जिसका आशय है कि पुत्रवधू,, संध्या सोमन ने इस इस शब्द की ओर ध्यान दिलाया है, तदर्थ आभार।
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