हरियाणा में गुप्तकाल का एक
अभिलेख आज से 140 साल पहले खोजा गया था। यह पहाड़ी पर लिखा गया था और इसको
तुषाम या तुसाम अभिलेख के नाम से एशियाटिक सोसायटी सहित भारतीय पुरातत्व
सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों ने नामांकित करते हुए प्रकाशित किया। यह एक
ऐसा गिरि-अभिलेख है जिसमें चक्र को वैष्णवीय प्रतीक के रूप में उत्कीर्ण
किया गया है। तड़ाग बनवाकर उसके समीप की पहाड़ी को उसका शिखर मानते हुए उस
पर लेख सहित चक्र अंकित किया गया, यह कालांतर में वैष्णवीय परंपरा में
स्वीकार्य रहा। यही नहीं, इसमें सात्वतों का जिक्र है और सात्वत संहिता,
सुदर्शनसंहिता, विष्णुसंहिता आदि में भी वैष्णवीय चक्र के रूप में
सुदर्शन की बड़ी महिमा लिखी गई है, यही नहीं, वैष्णवीय प्रासाद, तड़ाग आदि
में भी शिखर पर स्थान देने का निर्देश किया गया। यही नहीं, इसमें
वैष्णवीय योग के संबंध में भी लिखा गया जो कि विष्णुपुराण, गीता आदि में
स्मरणीय है। किंतु, इस प्रतीक को शिलालेख की खोज के दौरान प्रथमत: बौद्ध
या सौर चिन्ह के रूप में देखा गया।
हाल ही श्री रणवीरसिंहजी ने इस तुषाम अभिलेख की एक तस्वीर फेसबुक पर पोस्ट की, मेरी जिज्ञासा ने इस लेख के सारे संदर्भों को खोजने की दिशा में प्रेरित किया और जो जानकारियां पुरातत्व विभाग सहित प्रो. जेएफ फ्लीट आदि के संग्रहों से मिल सकी, उसको मैंने श्री रणवीरसिंहजी की फेसबुक वॉल पर तो लिखा ही, किंतु यह भी सोचा कि इसके बारे में अपने मित्र भी जान सके। उन सभी मित्रों को भी इस शिलालेख को उसके वर्तमान चित्र और मूल पाठ, अनुवाद सहित दिखाना चाहता हूं जो इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते। इस अभिलेख की प्रारंभिक जानकारी जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1875 ई. आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया के जिल्द 5 (पृष्ठ 138) से दी। कनिंघम ने तत्कालीन पद्धति के अनुसार शिलामुद्रण के साथ बाबू प्रतापचंद्र घोष कृत लेख का अनुवाद प्रकाशित किया।
इसका पाठ इस प्रकार है--
जितम भीक्ष्णमेव जाम्बवतीवदनारव िन्दोर्ज्जिताळ िना।
दानवांगाना मुखाम्भोज लक्ष्मी तुषारेण विष्णुना।।
अनेक पुरुषाभ्यागतर् य्य सात्वतयोगाचार् य्य
भगवद्भक्त यशस्त्रात प्रपोत्रस्याचा र्य्य विष्णुत्रात
पाैत्रास्याचार ्य्य वसुदत्तपुत्रस् य रावण्यामुत्पन ्नस्य
गोतम सगोत्रस्याचार् य्यापाद्धयाय यशस्त्रातान्
जस्याचार्य्य सोमत्रातस्येदं भगवत्पादोपयोज् यं
कुण्डमुपर्य्या वस्थ: कण्डं चापरं।।
इन संस्कृत पंक्तियों का आशय है कि-
हाल ही श्री रणवीरसिंहजी ने इस तुषाम अभिलेख की एक तस्वीर फेसबुक पर पोस्ट की, मेरी जिज्ञासा ने इस लेख के सारे संदर्भों को खोजने की दिशा में प्रेरित किया और जो जानकारियां पुरातत्व विभाग सहित प्रो. जेएफ फ्लीट आदि के संग्रहों से मिल सकी, उसको मैंने श्री रणवीरसिंहजी की फेसबुक वॉल पर तो लिखा ही, किंतु यह भी सोचा कि इसके बारे में अपने मित्र भी जान सके। उन सभी मित्रों को भी इस शिलालेख को उसके वर्तमान चित्र और मूल पाठ, अनुवाद सहित दिखाना चाहता हूं जो इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते। इस अभिलेख की प्रारंभिक जानकारी जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने 1875 ई. आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया के जिल्द 5 (पृष्ठ 138) से दी। कनिंघम ने तत्कालीन पद्धति के अनुसार शिलामुद्रण के साथ बाबू प्रतापचंद्र घोष कृत लेख का अनुवाद प्रकाशित किया।
इसका पाठ इस प्रकार है--
जितम भीक्ष्णमेव जाम्बवतीवदनारव
दानवांगाना मुखाम्भोज लक्ष्मी तुषारेण विष्णुना।।
अनेक पुरुषाभ्यागतर्
भगवद्भक्त यशस्त्रात प्रपोत्रस्याचा
पाैत्रास्याचार
गोतम सगोत्रस्याचार्
जस्याचार्य्य सोमत्रातस्येदं
कुण्डमुपर्य्या
इन संस्कृत पंक्तियों का आशय है कि-
1. '' जाम्बवंती के मुखरूपी कमल के
लिए शक्तिमान भ्रमर के समान तथा दानवों की स्त्रियां के मुखरूपी कमल की
शोभा के विनाश के लिए तुषार स्वरूप भगवान विष्णु द्वारा पुन-पुन: विजय
प्राप्त की गई।
2. भगवान के चरणों के उपभोग के लिए निर्मित यह तडाग तथा इसके ऊपर निर्मित भवन तथा दूसरा तडाग आचार्य सोमत्रात की कृति है, जो कि पूर्व पीढियों के विविध लोगों के उत्तराधिकारी, महापूजनीय सात्वत तथा योगदर्शन के आचार्य तथा भगवान के परम भक्त यशस्त्रात के प्रपोत्र है, आचार्य विष्णुत्रात के पोत्र रावणी से उत्पन्न आचार्य वसुदत्त के पुत्र हैं, गोतम गोत्र के हैं तथा आचार्य एवं उपाध्याय यशस्त्रात के अनुज हैं।''
मित्रों को याद रहे कि हरयाणा में तुशाम गांव के ठीक पश्चिम में एक चढ़ान युक्त पहाड़ी है जो भूमिस्तर से एकाएक प्रारंभ होती है और लगभग 800 फीट ऊंचाई तक जाती है, वर्तमान लेख पहाड़ी के पूर्वी भाग में लगभग आधी ऊंचाई पर एक शिलास्तर पर अंकित है। यह लेख किसी शासक से संबंधित नहीं, इसमें कोई तिथि भी नहीं है लिपिशास्त्रीय आधार पर इसको चौथी शताब्दी के अंत में या पांचवीं सदी के प्रारंभ में रखा गया है। श्री रणवीरसिंह जी ने 1998 में पहाड़ी पर चढ़कर इस तस्वीर को लिया और अपने खजाने से हम जैसों के लिए सुलभ करवाया, उनका आभार मानना चाहिए... जय जय।
2. भगवान के चरणों के उपभोग के लिए निर्मित यह तडाग तथा इसके ऊपर निर्मित भवन तथा दूसरा तडाग आचार्य सोमत्रात की कृति है, जो कि पूर्व पीढियों के विविध लोगों के उत्तराधिकारी, महापूजनीय सात्वत तथा योगदर्शन के आचार्य तथा भगवान के परम भक्त यशस्त्रात के प्रपोत्र है, आचार्य विष्णुत्रात के पोत्र रावणी से उत्पन्न आचार्य वसुदत्त के पुत्र हैं, गोतम गोत्र के हैं तथा आचार्य एवं उपाध्याय यशस्त्रात के अनुज हैं।''
मित्रों को याद रहे कि हरयाणा में तुशाम गांव के ठीक पश्चिम में एक चढ़ान युक्त पहाड़ी है जो भूमिस्तर से एकाएक प्रारंभ होती है और लगभग 800 फीट ऊंचाई तक जाती है, वर्तमान लेख पहाड़ी के पूर्वी भाग में लगभग आधी ऊंचाई पर एक शिलास्तर पर अंकित है। यह लेख किसी शासक से संबंधित नहीं, इसमें कोई तिथि भी नहीं है लिपिशास्त्रीय आधार पर इसको चौथी शताब्दी के अंत में या पांचवीं सदी के प्रारंभ में रखा गया है। श्री रणवीरसिंह जी ने 1998 में पहाड़ी पर चढ़कर इस तस्वीर को लिया और अपने खजाने से हम जैसों के लिए सुलभ करवाया, उनका आभार मानना चाहिए... जय जय।
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