सिंघुघाटी
सभ्यता के निवासियों ने जिस भूमि से अपने लिए बहुत से संसाधन जुटाए, उस
मेवाड़ क्षेत्र के पछमता गांव के टीलों की खुदाई में हाल ही कई चौंकाने
वाले तथ्य उजागर हुए हैं। यहां जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ
विश्व विद्यालय, केनेसा स्टेट यूनिवरसिटी अमेरिका तथा डेकन कॉलेज, पुणे
के साझे में इन दिनों उत्खनन कार्य चल रहा है और हाल ही जो प्रमाण मिले
हैं, वे जाहिर करते हैं कि वे करीब पांच हजार साल पुरानी भारतीय सभ्यता और
संस्कृति की झलक लिए हैं। पछमता राजसमंद जिले का गांव है और बनास नदी के
प्रवाह क्षेत्र में गिलूंड के पास ही बसा है। इसको आहाड़ और बनास सभ्यता
का हिस्सा माना जाता है और इसके करीब 110 गांवों मे से एक हैं। सचमुच
प्राचीनतम गांवों की शृंखला का मेवाड़ बडा क्षेत्र रहा है। बनास को वर्णासा
के रूप में पुराणों और स्मृतियों में संदर्भित किया गया है। आयुर्वेद के
प्राचीनतम ग्रंथों में इस नदी के जल के स्वाद और गुणधर्म की चर्चा की गई
है। मैंने 'मेवाड़ का प्रारम्भिक इतिहास' में इस संबंध में चर्चा की है।
इस क्षेत्र को खेती के लिहाज से विकसित किया गया था। यह किसानों की बहुलता वाला गांव था। खेती को जीवन का आवश्यक अंग मानकर इस क्षेत्र को उत्पाद के लिए चुना गया था। उनके पास अपने कार्यों को अंजाम देने के लिए कांसा और जस्ता के औजार थे। हमें याद रखना चाहिए कि दुनिया को जस्ता देने का श्रेय मेवाड़ काे ही है। ये प्रमाण इस बात को पुष्ट कर रहे हैं कि करीब 2500 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी कांसा और जस्ता प्राप्त करने के लिए यहां आते थे। यहां से सुरक्षा के लिहाज से बनाया गया परकोटा भी सामने आया है। मिट्टी के बर्तनों का निर्माण काली और लाल मृदा से तैयार किए जाते थे जिन पर खडिया से चित्रकारी की जाती थी। चूल्हों का निर्माण भी लाल मिट्टी से किया जाता था और उनको धूप में सेका जाता था। महिलाओं को चूडियां तब भी पसंद थी और खास बात ये कि वे विशेष आभूषण की तरह विशेष अवसरों के लिए बनाई गई थी... कई जानकारियां हैं जाे अभी सामने आएंगी और समय-समय पर राजस्थान विद्यापीठ से जुड़े, मित्रवर डाॅ. ललित पांडे बताएंगे। मेरे लिए यह खुशी का विषय है कि पछमता की पुरा सम्पदा के संबंध में कुछ सालों पहले मैंने अपनी किताब में खुलासा किया था।
इस क्षेत्र को खेती के लिहाज से विकसित किया गया था। यह किसानों की बहुलता वाला गांव था। खेती को जीवन का आवश्यक अंग मानकर इस क्षेत्र को उत्पाद के लिए चुना गया था। उनके पास अपने कार्यों को अंजाम देने के लिए कांसा और जस्ता के औजार थे। हमें याद रखना चाहिए कि दुनिया को जस्ता देने का श्रेय मेवाड़ काे ही है। ये प्रमाण इस बात को पुष्ट कर रहे हैं कि करीब 2500 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी कांसा और जस्ता प्राप्त करने के लिए यहां आते थे। यहां से सुरक्षा के लिहाज से बनाया गया परकोटा भी सामने आया है। मिट्टी के बर्तनों का निर्माण काली और लाल मृदा से तैयार किए जाते थे जिन पर खडिया से चित्रकारी की जाती थी। चूल्हों का निर्माण भी लाल मिट्टी से किया जाता था और उनको धूप में सेका जाता था। महिलाओं को चूडियां तब भी पसंद थी और खास बात ये कि वे विशेष आभूषण की तरह विशेष अवसरों के लिए बनाई गई थी... कई जानकारियां हैं जाे अभी सामने आएंगी और समय-समय पर राजस्थान विद्यापीठ से जुड़े, मित्रवर डाॅ. ललित पांडे बताएंगे। मेरे लिए यह खुशी का विषय है कि पछमता की पुरा सम्पदा के संबंध में कुछ सालों पहले मैंने अपनी किताब में खुलासा किया था।
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