कीमियागरी यानी कौतुकी विद्या। इसी तरह से भारतीय मनीषियों की जो मौलिक देन है, वह रसायन विद्या रही है। हम आज केमेस्ट्री पढ़कर सूत्रों को ही याद करके द्रव्यादि बनाने के विषय को रसायन कहते हैं, मगर भारतीयों ने इसका पूरा शास्त्र
विकसित किया था। यह आदमी का कायाकल्प
करने के काम आता था। उम्रदराज होकर भी कोई
व्यक्ति पुन: युवा हो जाता और अपनी उम्र को छुपा लेता था।
पिछले दिनों भूलोकमल्ल चालुक्य राज सोमेश्वर के 'मानसोल्लास' के अनुवाद में लगने पर इस विद्या के संबंध में विशेष जानने का अवसर मिला। उनसे धातुवाद के साथ रसायन विद्या पर प्रकाश डाला है। बाद में, इसी विद्या पर आडिशा के राजा गजधर प्रतापरुद्रदेव ने 1520 में 'कौतुक चिंतामणि' लिखी वहीं ज्ञात-अज्ञात रचनाकारों ने काकचंडीश्वर तंत्र, दत्तात्रेय तंत्र आदि कई पुस्तकों का सृजन किया जिनमें पुटपाक विधि से नाना प्रकार द्रव्य और धातुओं के निर्माण के संबंध में लिखा गया।
मगर रसायन प्रकरण में कहा गया है कि रसायन क्रिया दो प्रकार की होती है-
1 कुटी प्रवेश और
पिछले दिनों भूलोकमल्ल चालुक्य राज सोमेश्वर के 'मानसोल्लास' के अनुवाद में लगने पर इस विद्या के संबंध में विशेष जानने का अवसर मिला। उनसे धातुवाद के साथ रसायन विद्या पर प्रकाश डाला है। बाद में, इसी विद्या पर आडिशा के राजा गजधर प्रतापरुद्रदेव ने 1520 में 'कौतुक चिंतामणि' लिखी वहीं ज्ञात-अज्ञात रचनाकारों ने काकचंडीश्वर तंत्र, दत्तात्रेय तंत्र आदि कई पुस्तकों का सृजन किया जिनमें पुटपाक विधि से नाना प्रकार द्रव्य और धातुओं के निर्माण के संबंध में लिखा गया।
मगर रसायन प्रकरण में कहा गया है कि रसायन क्रिया दो प्रकार की होती है-
1 कुटी प्रवेश और
2 वात तप सहा रसायन।
मानसोल्लास में शाल्मली कल्प गुटी, हस्तिकर्णी कल्प,
गोरखमुंडी कल्प,
श्वेत पलाश कल्प, कुमारी कल्प आदि का रोचक वर्णन है,
शायद ये उस समय तक उपयोग में रहे भी होगे,
जिनके प्रयोग से व्यक्ति "चिरायु होता, बुढापा नहीं सताता, सफेद बाल से मुक्त होता..."
जैसा कि सोमेश्वर ने कहा है -
"एवं रसायनं प्रोक्तमव्याध िकरणं नृणाम्। नृपाणां हितकामेन सोमेश्वर महीभुजा।।" (मानसोल्लास, शिल्पशास्त्रे आयुर्वेद रसायन प्रकरणं 51)
ऐसा विवरण मेरे लिए ही आश्चर्यजनक नहीं थी, अपितु अलबीरूनी को भी चकित करने वाला था। उसने कहा था-
' कीमियागरी की तरह ही एक खास शास्त्र हिंदुओं की अपनी देन है जिसे वे रसायन कहते हैं। यह कला प्रायः वनस्पतियों से औषधियां बनाने तक सीमित थी,
रसायन सिद्धांत के अनुसार उससे असाध्य रोगी भी निरोग हो जाते थे,
बुढापा नहीं आता,,,
बीते दिन लौटाये जा सकते थे,
मगर क्या कहा जाए कि इस विद्या से नकली धातु बनाने का काम भी हो रहा है। (अलबीरुनी,
सचाऊ द्वारा संपादित संस्करण भाग पहला,
पेज 188-189)
है न अविश्वसनीय मगर, विदेशी यात्री की मुहर लगा प्राचीन
भारतीय रसायन
विज्ञान...। इस विषय पर आपके विचार भी सादर आमंत्रित है।
muze raj someshwar ki aapke dvara anuvadit mansollas book chahiye. mera contact no:-09975464655. plz call me sir.
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