बुधवार, 24 दिसंबर 2014

द्राविड़ प्रासाद : रचनात्‍मक स्‍वरूप

शिल्‍प शास्‍त्रों में जिन तीन प्रकार के प्रासादों का उल्‍लेख मिलता है, उनमें द्राविड या द्रविड़ शैली के प्रासाद विंध्‍याचल से कृष्‍णा तक के प्रदेश में करणीय बताए गए हैं।
 
अजितागम नामक शैव आगम में आया है कि वे प्रासाद जिनमें कण्‍ठ आदि का निर्माण अष्‍टकोणीय रूप में हो, वे द्राविड़ प्रासाद कहे जाते हैं :
 
कण्‍ठात्‍प्रभृति चाष्‍टाश्रं द्राविडं परिकीर्तितत्। (क्रियापाद, 12, 67)
 
इसी प्रकार सुप्रभेदागम में आया है : 
 
ग्रीवमारभ्‍य चाष्‍टाश्रं विमानं द्राविडाख्‍यकम्। (सुप्रभेद. 1, 31, 40)
 
करणागम में मामूली भेद से कहा गया है : 
 वेदि प्रभृति चाष्‍टाश्रं द्राविडं चेति कीर्तिततम्। (करण. 1, 7, 117)
 
इन्‍हीं प्रासादों में अन्‍य रूपों को आरोपित करते हुए अन्‍य रूपों का विन्‍यास किया जाता रहा है, जैसे सौभद्र, स्‍वस्तिकबंध, सर्वतोमुख, सार्वकामिकम् आदि। शैवागमों में इस प्रकार की मान्‍यताओं का सर्वाधिक वर्णन मिलता है, कारण है कि शिवलिंग की स्‍थापना और उनका पूजा विधान का प्रसार करना। कामिकागम इनमें सबसे पुराना विवरण लिए है और अंशुमद्भेदागम जैसे अन्‍य आगम उसी का आश्रय ग्रहण किए हैं। मयमतं, मानसार जैसे शिल्‍पग्रंथ और तंत्र समुच्‍चय आदि में भी यह विवरण मिल जाता है।
 
द्राविड़ प्रासादों में भी मनुष्‍य के शरीर के अंगों का ऊर्ध्‍वाधर विन्‍यास मिलता है। एक प्रासाद अपने रूप में मानवीय संरचना ही लिए होता है। एक द्राविड प्रासाद का रेखांकन इस मान्‍यता को सिद्ध करने में सहायक है। देखियेगा कि चरण से लेकर सिर तक के अंग प्रासाद में कौन-कौन से और कैसे-कैसे होते हैं, ये ही पर्यायवाची शिल्‍पग्रंथों में प्रयुक्‍त हैं -
 
  • उपपीठ (पांव तल),
  • अधिष्‍ठान (तल से ऊपरीभाग जिसमें पीठ, उपान, प्रति अंग होते हैं),
  • जानु मण्‍डल (जंघा भाग),
  • पादवर्ग (पांव, स्‍तम्‍भ, अंघ्रि, चरण),
  • कराकरम् (भुजाएं, न्‍यग्रोध),
  • प्रस्‍तार व बाहुमूलम (भुजाएं),
  • कण्‍ठ (गल या ग्रीवा),
  • गुल (ठुड्डी),
  • आस्‍य (मुख भाग),
  • महानासी या अल्‍पनासी (नाक, नासिका),
  • कर्ण (कान),
  • शिखर (सिर का भाग),
  • शृंग, उरुशृंग (शिरोपरिभाग),
  • स्‍तूपी (सिर के केश आदि),
  • शिखा या ध्‍वजा (सिर के ऊंचे, खुले केश)।
 
प्रासाद का यह रूप जहां भी मिलता है, वह एक काया रचना ही लगता है, देखियेगा। भारतीय और मिस्र आदि के प्रासादो में तुलनात्‍मक रूप में यह अंतर बहुत अधिक है। इसके अंगों के ताल और मान पर हजारों श्‍लोक मिल हैं और सबमें अनुपात पर ही जोर दिया गया है,,, वह विवरण कभी फिर।
 
- डॉ. श्रीकृष्‍ण 'जुगनू'

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