धार के परमार नरेश राजा भोज
(1015-1045 ई.) के लिखे 'समरागण सूत्रधार' में प्रासादों की प्रशस्ति में
ऐसे 64 प्रकार के मंदिरों का उल्लेख है जो प्रशंसा के योग्य हैं। इसमें
चौंसठ मंदिरों का जिक्र है और उनको संबंधित देवताओं के लिए बनाने का
निर्देश है। प्रत्येक देवता के लिए आठ आठ प्रकार के प्रासाद बताए गए
हैं। ये प्रासाद शिव, विष्णु, ब्रह्मा, सूर्य, चंडिका, गणेश, लक्ष्मी और
अन्य देवताओं के लिए हैं। प्रासादों की शैली या देवताओं की प्रतिष्ठा के
अनुसार उनके लक्षणों को पहचाना जा सकता है।
- 1. शिव प्रासाद - विमान, सर्वतोभद्र, गजपृष्ठ, पद्मक, वृषभ, मुक्तकोण, नलिन और द्राविड।
- 2. विष्णु प्रासाद - गरुड, वर्धमान, शंखावर्त, पुष्पक, गृहराज, स्वस्तिक, रुचक और पुंडवर्धन।
- 3. ब्रह्मा प्रासाद - मेरु, मंदर, कैलास, हंस, भद्र, उत्तुंग, मिश्रक व मालाधर।
- 4. सूर्य प्रासाद - गवय, चित्रकूट, किरण, सर्वसुंदर, श्रीवत्स, पद्मनाभ, वैराज और वृत्त।
- 5. चडिका प्रासाद - नंद्यावर्त, वलभ्य, सुपर्ण, सिंह, विचित्र, योगपीठ, घंटानाद व पताकिन।
- 6. विनायक प्रासाद - गुहाधर, शालाक, वेणुभद्र, कुंजर, हर्ष, विजय, उदकुंभ व मोदक।
- 7. लक्ष्मी प्रासाद - महापद्म, हर्म्य, उज्जर्यन्त, गन्धमादन, शतशृंग, अनवद्यक, सुविभ्रान्त और मनोहारी।
इसके अलावा वृत्त, वृत्तायत, चैत्य, किंकिणी, लयन, पट्टिश, विभव और
तारागण नामक प्रासाद और बताए गए हैं जो सभी देवताओं के लिए हो सकते हैं।
यहां लयन प्रासादों का विवरण रोचक है, यह पर्वतों को काटकर बनाए गए
गुहागृहों या प्रासादों के लिए है (जैसा कि अलोरा का चित्र दिखा रहा है),
ये कौतुक है या सचमुच,,, बस सोचना है।
इसके बारे में कभी फिर...
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