हमारे यहां देवालयों के कई प्रकार हैं। सांधार और निरंधार तो संज्ञाएं हैं ही, मगर लयन या लेण गृह उन गुफाआें के लिए कहा गया है जिनमें शुरू शुरू में आवास के साथ-साथ आराधना का सिलसिला शुरू हुआ था। गुप्तकालीन प्रमाण जाहिर करते हैं कि देवालयों के कई स्वरूपों का विकास हो चुका था। बृहत्संहिता और उसका आधार रही काश्यपीय संहिता में कैलास आदि दर्जनों प्रासाद शैलियों और स्वरूपों का वर्णन आया है। राजा भोज ने 1010 ई. के आसपास जब समरांगण सूत्रधार ग्रंथ की रचना की तो प्रासादों के देवानुसार स्पष्ट वर्गीकरण किया गया और इतने अधिक स्वरूपों का वर्णन किया कि उनको यदि मॉडल रूप में भी बनाया जाए तो एक भारत और चाहिए। हजारों रूप है प्रासादों के न्यास-विन्यास
कैसे होता था इनका निर्माण ?
शास्त्रों में इनके तलच्छन्द और स्वरूप का ही वर्णन मिलता है, मगर ये सच है कि प्रासादों के निर्माण से पूर्व उनका नक्शा तैयार किया जाता था। नक्शों का प्रारंभिक जिक्र 'मिलिन्द पन्हो' में आता है। तब नगर वढ्ढकी या नगर निवेशक (नगरवर्धकी) भूमि के चयन से लेकर वहां पर नगर निवेश के लिए उचित मापचित्र तैयार करता था और उपयोगी, अावश्यक भवनों की योजना बनाकर नवीन नगर बसने के बाद दूसरी जगह चला जाता था। सौन्दरानन्द नामक बौद्धकाव्य और उसके समकालीन हरिवंशपुराण में 'अष्टाष्टपद' के रूप में नगर, राजधानी आदि की योजना कल्पित करने का प्रसंग आया है। यह 8 गुणा 8 यानी चौंसठ पद वास्तुन्यास होता था...। इसी आधार पर कपिलवस्तु और द्वारका की योजना तैयार हई थी।
राजा भोज के काल में ही भोजपुर का शिव मन्दिर बना। यह अपने सौंदर्य और शिल्प ही नहीं, स्थापत्य के लिए भी एक मानक शिवायतन के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह भी है कि इसके स्थापत्य के लिए पास की एक चट्टान पर नक्शा तैयार किया गया था। मंदिर की पूरी योजना को अलग-अलग रूप में तय किया गया और शिवलिंग से लेकर द्वार, दीवार, शिखर तक को परिकल्पित किया गया। समरांगण सूत्रधार में जिन प्रासादों के रूपों का लिखा गया है, उनमें शिवालयों के प्रसंग में इस प्रासाद की रचना और उसके नक्शे से शब्दों सहित योजना विधान को समझा जा सकता है।
यह प्रासाद दर्शन मेरे समरांगण सूत्रधार के अनुवाद (प्रकाशक- चौखम्बा संस्कृत सीरिज ऑफिस, वाराणसी) के समय बहुत काम आया। दो साल पहले, 2012 के अगस्त के पहले हफते में मैं भोपाल के कलाविद श्री सुरेशजी तांतेड और डॉ. महेंद्र भानावत के साथ भोजपुर पहुंचा तो यह सब देखकर विस्मित हो गया। मेरे आग्रह पर मित्र Gency Chaudhuri ने इन नक्शों के चित्रों को भेजा है,,, आप भी प्रासाद स्थापत्य विधान के मूलाधार तलच्छन्द की योजना का आनंद उठाइयेगा।
-डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू'
राजा भोज के काल में ही भोजपुर का शिव मन्दिर बना। यह अपने सौंदर्य और शिल्प ही नहीं, स्थापत्य के लिए भी एक मानक शिवायतन के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर की विशेषता यह भी है कि इसके स्थापत्य के लिए पास की एक चट्टान पर नक्शा तैयार किया गया था। मंदिर की पूरी योजना को अलग-अलग रूप में तय किया गया और शिवलिंग से लेकर द्वार, दीवार, शिखर तक को परिकल्पित किया गया। समरांगण सूत्रधार में जिन प्रासादों के रूपों का लिखा गया है, उनमें शिवालयों के प्रसंग में इस प्रासाद की रचना और उसके नक्शे से शब्दों सहित योजना विधान को समझा जा सकता है।
यह प्रासाद दर्शन मेरे समरांगण सूत्रधार के अनुवाद (प्रकाशक- चौखम्बा संस्कृत सीरिज ऑफिस, वाराणसी) के समय बहुत काम आया। दो साल पहले, 2012 के अगस्त के पहले हफते में मैं भोपाल के कलाविद श्री सुरेशजी तांतेड और डॉ. महेंद्र भानावत के साथ भोजपुर पहुंचा तो यह सब देखकर विस्मित हो गया। मेरे आग्रह पर मित्र Gency Chaudhuri ने इन नक्शों के चित्रों को भेजा है,,, आप भी प्रासाद स्थापत्य विधान के मूलाधार तलच्छन्द की योजना का आनंद उठाइयेगा।
-डॉ. श्रीकृष्ण ‘जुगनू'
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