साथियो !
राजस्थान में होली के सात दिन बाद शीतला सप्तमी का पर्व मनाया जाता है। इसके एक दिन पूर्व महिलाएं बासोडा अर्थात रसोई की ठंडी सामग्री की तैयार करती है। वे रात में खाना बनाती है और सुबह शीतला की
पूजा करके, कथा सुनकर सबको बासोडा या ठंडा खाना खिलाती है। महिलाएं अपने हाथ से इस
दिन आग जलाने जैसा काेई काम नहीं करती है। इसके पीछे उसका मकसद यह रहता है
कि बच्चे बच्चियों को कभी चेचक जैसी बीमारी नहीं हो। इस दिन मां शीतला के गीत गाए
जाते हैं -
सीळी सीळी ए म्हारी सीतळा ए माय.. बारुडा रखवाळी सोहे सीतला ए
माय...।
इस महाव्याधि चेचक का उन्मूलन हुए बरस हो गए मगर शीतलादेवी अब भी पूजा के अन्तर्गत है। साल में चैत्री कृष्णा सप्तमी और भादौ कृष्णा सप्तमी को शीतला की पूजा की जाती है। पश्चिमी भारत ही नहीं, पूरे देश में शीतला की पूजा की जाती है, कई नामों से इसकी प्रतिष्ठा है मगर यह ब्राह्मण देवी नहीं मानी गई अन्यथा इसके भी पूजा विधान प्रारंभिक शास्त्रों में लिखे होते।
इस देवी का स्वरूप 12वीं सदी में संपादित हुए स्कन्दपुराण में आया है और मंत्र के रूप में इसको दिगम्बरा, रासभ या गधे पर सवार, मार्जनी-झाडू व कलश लिए तथा शूर्प से अलंकृत बताई गई है -
इस महाव्याधि चेचक का उन्मूलन हुए बरस हो गए मगर शीतलादेवी अब भी पूजा के अन्तर्गत है। साल में चैत्री कृष्णा सप्तमी और भादौ कृष्णा सप्तमी को शीतला की पूजा की जाती है। पश्चिमी भारत ही नहीं, पूरे देश में शीतला की पूजा की जाती है, कई नामों से इसकी प्रतिष्ठा है मगर यह ब्राह्मण देवी नहीं मानी गई अन्यथा इसके भी पूजा विधान प्रारंभिक शास्त्रों में लिखे होते।
इस देवी का स्वरूप 12वीं सदी में संपादित हुए स्कन्दपुराण में आया है और मंत्र के रूप में इसको दिगम्बरा, रासभ या गधे पर सवार, मार्जनी-झाडू व कलश लिए तथा शूर्प से अलंकृत बताई गई है -
नमामि शीतलादेवी रासभस्था दिगम्बरा। मार्जनी कलशोपेता शूर्पालंकृता
मस्तका।।
मध्यकाल में इसकी मूर्ति बनाने के लक्षण मेवाड में 1487 ईस्वी
में रचित वास्तुमंजरी आदि में लिखे गए।
प्रयाग के रामसुन्दर ने शीतला चालीसा को लिखा जबकि 1900 में डब्ल्यू. जे. विल्किंस ने हिंदू माइथोलॉजी, वैदिक एंड पुराणिक में इस देवी की मान्यताओं का सिंहावलोकन किया है। दुनिया के कोई सात धर्मों में इसकी अलग अलग नामों से मान्यता मिलती है। जापान आदि में यह सोपान देव के नाम से योरूवा धर्म में है। हमारे यहां बौद्धकाल में हारिति देवी के नाम से एक मातृका की पूजा की जाती थी, जिसकी गोद में बालक होता था, बालकों की रक्षा के लिए इसको पूजा जाता था। गांधार से तीसरी सदी की हारिति की मूर्तियां भी मिली हैं। ऐसा माना जाता है कि इस तरह की मान्यताओं का निकास इस्रायल, पेलेस्टाइन से हुआ। खासकर उन व्यापारियों से इसको पहचाना गया जो बर्तन आदि वस्तुओं का विपणन करने निकलते थे।
यह चेचक जिसे smallpox की देवी मानी जाती है। चेचक की व्याधि पूतना के नाम से पृथक नहीं है। भारत में इस व्याधि का प्रमाण 1500 ईसा पूर्व से खोजा गया है जबकि मिस्र में इसके प्रमाण 3000 वर्ष पूर्व, 1145 ईसापूर्व के मिलते हैं। वहां के राजा रामेस्सेस पंचम और उसकी रानी की जो ममी मिली है, उसमें इस रोग का प्रमाण है। चीन में इसका प्रमाण 1122 ईसापूर्व का मिला है, चीन से यह व्याधि कोरिया होकर 735-737 में जापान पहुंची तो महामारी की तरह फैली और एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई। भारत में औरंगजेब के शासनकाल के 16-17 सितंबर, 1667 ई. के एक फरमान से ज्ञात होता है कि शीतला के स्थानकों पर हिंदुओं और मुस्लिमों की भीड लग जाती थी, उनको नियंति करने के लिहाज से राजाज्ञा जारी करनी पडी थी। गांव गांव शीतला के स्थानक, मंदिर मिलते हैं। चाकसू, वल्लभनगर, सागवाडा आदि में मध्यकालीन मंदिर मिलते हैं।
है न चेचकी की देवी शीतला की विश्वयात्रा की रोचक कहानी। हमारे यहां तो होली के दहन के दूसरे दिन से लेकर सात दिनों तक रोजाना महिलाएं उठते ही शीतला माता को ठंडी करने जाती है, इन दिनों को ही अगता मानकर उनका पालन करती हैं... एक व्याधि के शमन के लिए देवी की पूजा की मान्यता हमारी आस्था की पगडंडियों को मजबूती देती दिखाई देती है।
प्रयाग के रामसुन्दर ने शीतला चालीसा को लिखा जबकि 1900 में डब्ल्यू. जे. विल्किंस ने हिंदू माइथोलॉजी, वैदिक एंड पुराणिक में इस देवी की मान्यताओं का सिंहावलोकन किया है। दुनिया के कोई सात धर्मों में इसकी अलग अलग नामों से मान्यता मिलती है। जापान आदि में यह सोपान देव के नाम से योरूवा धर्म में है। हमारे यहां बौद्धकाल में हारिति देवी के नाम से एक मातृका की पूजा की जाती थी, जिसकी गोद में बालक होता था, बालकों की रक्षा के लिए इसको पूजा जाता था। गांधार से तीसरी सदी की हारिति की मूर्तियां भी मिली हैं। ऐसा माना जाता है कि इस तरह की मान्यताओं का निकास इस्रायल, पेलेस्टाइन से हुआ। खासकर उन व्यापारियों से इसको पहचाना गया जो बर्तन आदि वस्तुओं का विपणन करने निकलते थे।
यह चेचक जिसे smallpox की देवी मानी जाती है। चेचक की व्याधि पूतना के नाम से पृथक नहीं है। भारत में इस व्याधि का प्रमाण 1500 ईसा पूर्व से खोजा गया है जबकि मिस्र में इसके प्रमाण 3000 वर्ष पूर्व, 1145 ईसापूर्व के मिलते हैं। वहां के राजा रामेस्सेस पंचम और उसकी रानी की जो ममी मिली है, उसमें इस रोग का प्रमाण है। चीन में इसका प्रमाण 1122 ईसापूर्व का मिला है, चीन से यह व्याधि कोरिया होकर 735-737 में जापान पहुंची तो महामारी की तरह फैली और एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई। भारत में औरंगजेब के शासनकाल के 16-17 सितंबर, 1667 ई. के एक फरमान से ज्ञात होता है कि शीतला के स्थानकों पर हिंदुओं और मुस्लिमों की भीड लग जाती थी, उनको नियंति करने के लिहाज से राजाज्ञा जारी करनी पडी थी। गांव गांव शीतला के स्थानक, मंदिर मिलते हैं। चाकसू, वल्लभनगर, सागवाडा आदि में मध्यकालीन मंदिर मिलते हैं।
है न चेचकी की देवी शीतला की विश्वयात्रा की रोचक कहानी। हमारे यहां तो होली के दहन के दूसरे दिन से लेकर सात दिनों तक रोजाना महिलाएं उठते ही शीतला माता को ठंडी करने जाती है, इन दिनों को ही अगता मानकर उनका पालन करती हैं... एक व्याधि के शमन के लिए देवी की पूजा की मान्यता हमारी आस्था की पगडंडियों को मजबूती देती दिखाई देती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
welcome of Your suggestions.